कोई भी लोकोचालक,किसी भी प्रक्सार का एक्सिडेंट करने के बारे में कभी भी नहीं सोचता है.और न ही किसी तरह का एक्सिडेंट करना चाहता है कुई की ऐसा करने से उसे भी नुकसान पहले होगा.पछिम बंगाल के एक्सिडेंट को ही ले,तो अप पाएंगे की ओह लोकोचालक,ड्यूटी में आने के पहले कभी भी नहीं सोचा होगा की उसे आजा की रात,एसा तरह के परिस्थितियों का सामना करना परेगा.किन्तु दुर्घटना बोला कर नहीं आती है,हो जाती है.अतः इसे रोकने का प्रयास हरा कीमत पर करनी चाहिए.अन्यथा निरीह लोगो की मौत होती रहेगी.
रेलवे में प्रायः यह देखा गया है की,लोकोचालक हमेसा मानसिक परेसनियो से ग्रस्त रहता है.इसका मैं कारन रेलवे प्रशासन ज्यादा है.मंडल रेल प्रबंधक ,हमेसा तरह-तरह के प्रेस्सेर लोकोचालाको के ऊपर बढ़ाते रहते है.जिसके बोझा टेल कम करना असहनीय हो जाता है.उदहारण के तौर पर जोनल लिंक को ही ले ले। जिससे लोकोचालाको पर एक्स्ट्रा बोझा बढ़ जाता है.वह भी बिना दुसरे मंडल के नियम कानून को जाने बिना .इस तरह देखा जाये तो,रेलवे में किसी BHI तरह के एक्सिडेंट होने PAR रेल मंडल प्रबधक को जिम्मेदार मन जाना चाहिए,और एस कड़ी में उसे रेलवे से बर्खास्त कर देना चाहिए.वसे लोकोचालाको को बलि का बकरा बनाया जाता है.आखिर ये सब कब तक चलता रहेगा, आज हम सभी लोकोचालाको को सोचने की बात है,हर एक्सिडेंट में लोकोचालाको को को ही जिम्मेदार ठहराना खा तक उचित है, इससे तो एसा जन पढ़ता है की प्रशासन अपने जिम्मेदारी से हाथ धोता है.लोकोचालाको सोचो और जागरुक बनो,अबी भी बहुत समय बाकि है.
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